हाइगा’ जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-हाइकु’ । हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला) हाइगा की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था | लेकिन आज डिजिटल फोटोग्राफी जैसी आधुनिक विधा से हाइगा लिखा जाता है- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’-डॉ हरदीप कौर सन्धु, हिन्दी हाइकु से साभार
यदि आप अपने हाइकुओं को हाइगा के रूप में देखना चाहते हैं तो हाइकु ससम्मान आमंत्रित हैं|
रचनाएँ hrita.sm@gmail.comपर भेजें - ऋता शेखर ‘मधु’
Monday 23 December 2013
Sunday 1 December 2013
हमारे गाँव - हाइगा में
आज हिन्दी हाइगा में शामिल हो रहे हैं ''कुमार गौरव अजीतेन्दु'' जी जिन्होंने गाँव के खूबसूरत एहसासों को हाइकु में बड़ी सुन्दरता से पिरोया है...हाइगा के रूप में उनके ख्याल प्रस्तुत हैं...आपकी टिप्पणियों के इन्तेज़ार में...शुभकामनाएँ !!
सिंहनाद-गौरव जी का ब्लॉग
कुमार गौरव अजीतेन्दु |
सारे चित्र गूगल से साभार
Wednesday 27 November 2013
ख़्वाबों की खुश्बू- हाइकु जगत के सुरभित फूल
ख़्वाबों की खुश्बू- हाइकु जगत के सुरभित फूल
अभी हाल में ही मुझे तीन हाइकु संग्रह मिले|
१.माटी की नाव-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
२.ख़्वाबों की ख़ुश्बू-डॉ हरदीप कौर संधु
३.मन के द्वार हजार-रचना श्रीवास्तव
सर्वप्रथम मैंने डॉ हरदीप जी के एकल हाइकु संग्रह को पढ़ा|पूरे हाइकु को नौ खंडों में बाँटा गया है, हर खंड किसी खास विषय या भाव को समर्पित हैं| सहज स्वभाविक अभिव्यक्ति उनके हाइकुओं की खासियत होती है|बहुत ही सुंदर कलेवर में सजी हाइकु पुस्तक में ५९८ हाइकु हैं|वरिष्ठ हाइकु लेखिका आ० सुधा गुप्ता जी ,आ० रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी,डॉ भावना कुँअर जी एवं रचना श्रीवास्तव जी ने पुस्तक के लिए अपनी शुभकामनाएँ दी हैं| पुस्तक पढ़ते हुए मन ने जहाँ पर भी वाह कहा वहाँ ठिठकी, फिर से पढ़ा और उन भावों में डूब सी गई|मन में उठते भाव को अभिव्यक्त किए बिना मैं न रह सकी|महसूस कीजिए ख़्वाबों की खुश्बू मेरी कलम से...आशा है इन हाइकुओं पर मैं अपने भाव प्रेषित करने में सफल हो पाऊँगी|
पुस्तक खोलते ही सबसे पहले प्रथम हाइकु ने ही मन को मोह लिया|
मन ही है जो क्षण भर में ही हजारों किलोमीटर की दूरी को पार कर जाता है, बहुत सहज अभिव्यक्ति !
पत्र जो मिला/लगा बहुत पास/दूर का गाँव
बचपन माता पिता के अलावा नानी-दादी की बाहों को भी नहीं भूलता, इसे बताते सारे हाइकु संयुक्त परिवार के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं|
क्या था ज़माना/बड़ा था परिवार/एक ठिकाना
कैमरा क्लिक/मुँह छुपाए अम्मा/ताई कहे न
बादल आए/दादी न चैन पाए/उपले ढके
नानी के बाल/तेल सरसों लगा,/सोने के तार
रात अँधेरी/दे रही है पहरा/बापू की खाँसी
दादी के बाद/संदूक व चरखा/एक कोने में
यादें मन की परतों पर अपना खास स्थान रखती हैं और इन यादों को हरदीप जी ने इस तरह से सँभाला है|
बिखरी यादें/मन के आँगन में/अमोल हीरे
पाखी है यादें/मन खुला आसमाँ/उड़ी ये यहाँ
ठंढक मिली/आया जब यादों का/नाज़ुक झोंका
कुछ पिघला/जाग गईं सुधियाँ/आँखें सजल
जब नारी माँ बनती है तो बहुत सारे सुखद अहसास से गुजरती है,उस एहसास की खुश्बू पाठकों तक इस प्रकार पहुँची|
जन्मी बिटिया/लगा आठो पहर/गूँजते गीत
जन्मी बिटिया/अलगनी पे टँगे/रंगीन फ्राक
गोद में नन्ही/माँ के आँचल में ज्यों/खिली चाँदनी
शिशु जो रोए/माँ के मोम दिल को/कुछ-कुछ हो
माँ-बेटी के प्यार को हाइकु में इस तरह पिरोया है लेखिका ने|
माँ हर दिन/मुझसे बतियाती/मेरे मन में
बात जाने वो/चेहरा पढ़कर/अंतर्यामी माँ
माँ और बेटी/सुख दुख टटोलें /टेलीफोन से
एक अच्छा और सच्चा दोस्त सौभाग्य से ही मिलता है, दोस्ती पर बड़े ही नायाब हाइकु हैं पुस्तक में|
सर्द माथे पे/है गर्म हथेली की/छुअन दोस्ती
दोस्ती लगी/महकते फूलों की/मीठी खुश्बू
ज़िन्दगी के सफ़र में अनुभव मिलते गए और उन भावों को बटोरकर हाइकु बनते गए,देखिए|
साया ही तो है/हमारी ये ज़िन्दगी/धूप-छाँव का
दुःख आएँ तो/तब यही ज़िन्दगी/लगे कुरूप
साँसों की किश्ती/हवाओं के सहारे/तैरती रही
रक्त से नहीं/हृदय से बनते/पावन रिश्ते
कैसी वाटिका/जहाँ रंग-बिरंगे/फूल लापता
कुछ अनोखे सच से लेखिका ने इस प्रकार से परिचय करवाया|
खाने वालों की/ उठा रहे जूठन/ये भूखे बच्चे
ऊँचे मकान/रेशमी हैं परदे/उदास लोग
किया उजाला/काजल भी उगला/दीप जो जला
गैरों ने मारा/अब अपने मारें/आज़ाद हम
प्रकृति का सौन्दर्य,तपन-शीतलता-स्वाद, इन सबको हाइकु में यूँ उकेरा गया है...
ग्रीष्म ऋतु में/देखे जो आम/टपके लार
छत पे सोए/बारिश अचानक/भागना पड़ा
किरणें ओढ़/सोने सी सुनहरी/आया बसंत
जेठ महीना/अंगार हैं झरते/तपता सूर्य
फूल मनाए/वेलेनटाइन डे/कलियों संग
गर्मी सताए/घुँघरु लगी पंखी/जान बचाए
अब कुछ पावन एहसास...
तू चुप रहा/चेहरा करे बयाँ/ये सारी दास्ताँ
ढूँढा बहुत/कहीं ढूँढ न पाए/हृदय-धन
जब हो दर्द/बस एक चाहिए/तुम्हारा स्पर्श
खुली किताब/गिरा सूखा गुलाब/चमकी यादें
पुस्तक के संसार-सरिता खंड में डुबकी लगाई तो हाइकु मोतियों की चमक भावविभोर कर गई|
नज़रें मिलीं/चाहत के हाशिए/छलक उठे
जब तू हँसी/फ़िज़ा में चाँदनी/फैलने लगी
सावन-घटा/रोम-रोम थिरका/रस छलका
दग़ा न देगा/चोंच जो दी उसने/चुग्गा भी देगा
पुस्तक का अन्तिम खंड-त्रिंजन अर्थात गाँव की हँसती गाती लडँकियों का समूह,इसी त्रिंजन को आधार बनाकर हरदीप जी ने ५० हाइकु बनाए हैं|
मन त्रिंजन/सदियों से बंजारा/घूमे आवारा
मन-त्रिंजन/लो तेरी याद आई/हँसी तन्हाई
कात रे मन/संसार-त्रिंजन में/मोह का धागा
जग त्रिंजन/अनजान नगरी/कहाँ ठिकाना
''ख़्वाबों की खुश्बू'' बहुत ही मनमोहक है, पुस्तक एक बार पढ़ना शुरु किया तो अन्त तक पढ़कर ही मन मानता है| आप भी पढ़ें,निःसंदेह इसकी खुश्बू से सराबोर हुए बिना नहीं रहेंगे आप...शुभकामनाओं सहित...ऋता शेखर 'मधु'
Sunday 10 November 2013
सांसों की सरगम---यथा नाम तथा गुण (पुस्तक समीक्षा )
सांसों की सरगम---यथा नाम तथा गुण
'सांसों की सरगम', अपने नाम के अनुरूप खूबसूरत हाइकु पुस्तक मेरे हाथों में है |यह वरिष्ठ लेखिका आदरणीया डा रमा द्विवेदी जी का एकल हाइकु संग्रह है जिसे रमा जी ने उपहारस्वरूप भेजा है | आवरण पृष्ठ की साजसज्जा बेहद खूबसूरत है| हिन्द युग्म की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य मात्र १५०/- रु है| इसमें रमा जी ने ५६९हाइकु पुष्प पिरोए हैं जिनमें विविध रंगों के१६ खुशबूदार पुष्प हैं | १६ विषयों पर आधारित सभी हाइकु हाइकुकार के गहन चिंतन को दर्शाते हैं| वरिष्ठ हाइकुकार आ०रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी एवं आ०डा सतीशराज पुष्करणा जी ने पुस्तक के लिए अनमोल शब्द लिखे हैं|
प्रकृति पर लिखे गए रमा जी के हाइकु अद्भुत हैं|
ओस के रूप में गिरते चाँद के आँसू उसका अकेलापन दर्शा रहे हैं जिसे ममतामयी उषा अपने आँचल से पोंछ रही है, बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न हो रहा है|
चाँद के आँसू / ओस बन बिखरे / उषा ने पोंछे
हाइकु एक बानगी यहाँ देखिए| समाज में जो कल्याणकारी और मधुर कार्य कर रहे हैं, आवश्यक नहीं कि उनके गुण भी उतने ही अच्छे हों|
मधुमक्खी है/ काम मधु बनाना/ गुण काटना
आग का गुण/ सिर्फ़ जलना नहीं/ जलाना भी
विपरीत परिस्थितियों को भी हँसते हँसते सह लेना चाहिए, उसका अद्भुत उदाहरण है यह हाइकु-
सहते वृक्ष/ वर्षा-शिशिर-ग्रीष्म/ खिलखिलाते
युवापीढ़ी पर अनावश्यक रोकटोक ठीक नहीं, इस हाइकु में देखिए|
वट न बनो/ पनपने दो पौधे/ निज छाँव में
नव जीवन सदा खुशियाँ ही देता है, यहाँ देखिए|
खिलता मन/ नई कोंपलें देख / विस्मृत गम
यह हाइकु मृगमरीचिका का आभास देता हुआ-
अंबर धरा/ क्षितिज में मिलन/ सुंदर भ्रम
व्यथित मन की दास्ताँ हैं ये हाइकु-
जुबाँ खामोश/ चेहरे पे उल्लास/ दर्द पर्दे में
हर रिश्ते में/ होता है अनुबंध/ दर्द-पैबंद
जिन्दगी के लिए रमा जी का नजरिया इस प्रकार है-
मंज़िल नहीं/ सफ़र है ज़िन्दगी/ रुकी तो खत्म
दोहरा व्यक्तित्व मन को क्षोभ से भर देता है,
सभ्य इंसान/ असभ्य हरकतें/ युग का सच
मनुष्य कभी कभी अपने ही गुणों से अनभिज्ञ रहता है, उसे पाने के लिए प्रेरित करता यह सुंदर हाइकु-
खंगालो जरा / मन का समंदर / मोती गहरे
कोई भी रचनकर्म काफी वक्त लेती है किन्तु उसे मिटाना हो तो पल भर भी नहीं लगता, इस बात को रमा जी ने हाइकु में इस तरह से सहेजा है--कठिन होता / रचनात्मक कार्य / ध्वंस आसान
माँ को शब्दों में बाँधना बहुत कठिन है पर इस हाइकु के बारे में क्या ख्याल है ?
माँ सरगम / माँ प्रेम प्रतिभास / माँ अहसास
आज के जमाने में जब सभी अंतरजाल से जुड़े हैं तो उस पर हाइकु भी अवश्य लिखा जाना चाहिए| रमा जी ने बहुत सुंदर हाइकु लिखे इस विषय पर...
हैं अनजान / अड़ोस पड़ोस से / सर्फिंग प्यार
फेसबुक में / ग़ज़ब आकर्षण / अजब नशा
ये थे रमा द्विवेदी जी के कुछ हाइकु जो 'सांसों की सरगम' की शोभा बढ़ा रहे हैं| अब बाकी हाइकु तो पुस्तक में ही पढ़े जा सकते हैं| विविध विषयों पर लिखे गए सभी हाइकु पढ़कर आपको भी आनन्द आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है| आगे भी रमा जी से इतनी ही सारगर्भित पुस्क की अपेक्षा है|
.........शुभकामनाओं सहित
ऋता शेखर 'मधु'
10/11/2013
Saturday 9 November 2013
Friday 1 November 2013
Wednesday 30 October 2013
अनुपम छवि - हाइगा में
नीना शैल भटनागर जी ने नया ब्लॉग बनाया है ...वहाँ follower बनें एवं उनकी कविताओं का आनंद लें ...प्रस्तुत है उनके हाइकुओं पर आधारित हाइगा
सारे चित्र गूगल से साभार
Sunday 27 October 2013
Friday 25 October 2013
Wednesday 16 October 2013
बरसा पानी - हाइगा में
आज हिन्दी हाइगा समूह से जुड़ रही हैं...सविता मिश्रा जी...
परिचय-http://kavitabhawana.blogspot.in/
प्रस्तुत हैं आपके हाइगा
परिचय-http://kavitabhawana.blogspot.in/
प्रस्तुत हैं आपके हाइगा
सविता मिश्रा |
सारे चित्र गूगल से साभार
Wednesday 9 October 2013
Tuesday 1 October 2013
अकेली चींटी - हाइगा में
आज हिन्दी हाइगा से जुड़ रहे हैं उमेश मौर्य जी...सादर आभार|
परिचय-
साथ ही अशोक सलूजा सर के हाइगा भी हैं...सादर आभार|
उमेश मौर्य
अशोक सलूजा
सारे चित्र गूगल से साभार
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