श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला - परिचय........................ http://www.triloksinghthakurela.blogspot.in/
- कुण्डलिया का उपवन "काव्यगंधा" - समीक्षा- ऋता शेखर 'मधु'
- हाल मे ही मुझे आदरणीय त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी की सद्य प्रकाशित कुण्डलिया संग्रह 'काव्यगंधा' मिली| अपने नाम के अनुरूप इस पुस्तक में काव्य विधा ''कुण्डलिया'' में रचित कई प्रकार के भाव एवं खुश्बू से सराबोर रचनाएँ हैं जो पुस्तक को अनुपम एहसास सौन्दर्य प्रदान कर रहे हैं| छंद-शास्त्र के अनुसार कुण्डलिया ऐसा छंद है जो दोहा और रोला को मिलाकर बनता है| प्रथम दो पंक्तियों में दोहा एवं नीचे की चार पंक्तियों में रोला लिखी जाती है| शिल्प विधान में बातों को सिर्फ कह देने भर से कुण्डलिया नहीं बन जाती बल्कि सारगर्भित कथ्य में लय एवं प्रवाह का समुचित ध्यान रखा जाता है| सात विविध क्यारियों में विविध भाव के १८० कुण्डलिया पुष्प सजाए काव्यगंधा का उपवन बहुत आकर्षक बन पड़ा है| जहाँ से कुण्डलिया शुरु होती है , उसके आरम्भ में कवि ने अपना एक हाइकु प्रस्तुत किया है जो निश्चय ही कुण्डलिया रूपी इमारत की सुदृढ़ नींव है|
- वही है बुद्ध
- जीत लिया जिसने
- जीवन युद्ध|
- सात भाव के कुण्डलिया निम्न लिखित शीर्षक के अन्तर्गत रखे गए हैं|
- १.शाश्वत......सबसे अधिक कुण्डलिया यहाँ पर है| यहाँ वह कथ्य है जो हम सदियों से सुनते आए है| उनकी सुन्दर, लयबद्ध प्रस्तुति शाश्वत कथ्यों में नयी जान डाल देती है| कवि की यह कुण्डलिया देखिए--
- सोना तपता आग में, और निखरता रूप।
- कभी न रुकते साहसी, छाया हो या धूप।।
- छाया हो या धूप, बहुत सी बाधा आयें।
- कभी ने बनें अधीर, नहीं मन में घबरायें।
- 'ठकुरेला ' कविराय , दुखों से कभी न रोना।
- निखरे सहकर कष्ट , आदमी हो या सोना।।
- जीवन में पैसों के महत्व को कवि ने बड़ी सहजता से समझाया है|
- दुविधा में जीवन कटे, पास न हों यदि दाम।
- रुपया पैसे से जुटें, घर की चीज तमाम।।
- घर की चीज तमाम, दाम ही सब कुछ भैया।
- मेला लगे उदास, न हों यदि पास रुपैया।
- ठकुरेला कविराय , दाम से मिलती सुविधा।
- बिना दाम के , मीत , जगत में सौ सौ दुविधा।
- कर्म पर आधारित यह कुण्डलिया बहुत सुन्दर है|
- कर्मों की गति गहन है, कौन पा सका पार।
- फल मिलते हर एक को, करनी के अनुसार।।
- करनी के अनुसार , सीख गीता की इतनी।
- आती सब के हाथ, कमाई जिसकी जितनी।
- 'ठकुरेला' कविराय , सीख यह सब धर्मों की।
- सदा करो शुभ कर्म , गहन गति है कर्मों की।
- कवि के देशप्रेम को दर्शाती उत्कृष्ट कुण्डलिया...
- माटी अपने देश की, पुलकित करती गात।
- मन में खिलते सहज ही, खुशियों के जलजात।।
- खुशियों के जलजात, सदा ही लगती प्यारी।
- हों निहारकर धन्य, करें सब कुछ बहिलारी।
- ‘ठकुरेला’ कविराय, चली आई परिपाटी।
- लगी स्वर्ग से श्रेष्ठ, देश की सौंधी माटी।।
- २. हिंदी......अपनी मातृभाषा, अपनी राष्ट्रभाषा से प्रेम करना किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए अति आवश्यक है| प्रभु से अपनी भाषा के लिए वरदान माँगना बहुत ही अद्भुत है जो कवि ने अपनी इस कुण्डलिया में लिखा है|
- हिन्दी को मिलता रहे, प्रभु ऐसा परिवेश।
- हिन्दीमय हो एक दिन, अपना प्यारा देश।।
- अपना प्यारा देश , जगत की हो यह भाषा।
- मिले मान-सम्मान , हर तरफ अच्छा खासा।
- 'ठकुरेला ' कविराय , यही भाता है जी को ।
- करे असीमित प्यार , समूचा जग हिन्दी को ।
- ३.गंगा...........गंगा नदी का महत्व कुण्डलिया के माध्यम से उभर कर सामने आ रहा है| डालते हैं एक नजर--
- केवल नदियां ही नहीं, और न जल की धार।
- गंगा माँ है, देवी है, है जीवन आधार।
- है जीवन आधार, सभी को सुख से भरती।
- जो भी आता पास, विविध विधि मंगल करती।
- 'ठकुरेला ' कविराय ,तारता है गंगा--जल।
- गंगा-अमृत -राशि , नहीं यह नदिया केवल।
- ४. होली.............भारत त्योहारों का देश है| त्योहारों में भी सर्वोपरि होली को देखते हैं कुण्डलिया की नजर से...
- होली आई, हर तरफ, बिखर गए नवरंग।
- रोम रोम रसमय हुआ, बजी अनोखी चंग।।
- बजी अनोखी चंग , हुआ मौसम अलबेला।
- युवा हुई हर प्रीति , लगा यादों का मेला ।
- 'ठकुरेला' कविराय , हुई गुड़ जैसी बोली ।
- उमड़ पड़ा अपनत्व , प्यार बरसाये होली
- ५. राखी.......बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बाँधा है...इस प्यार को कुण्डलिया ने इस तरह बाँधा है|
- राखी के त्यौहार पर, बहे प्यार के रंग।
- भाई से बहना मिली, मन में लिये उमंग।।
- मन में लिये उमंग , सकल जगती हरसाई ।
- राखी बांधी हाथ , खुश हुए बहना भाई ।
- 'ठकुरेला ' कविराय ,रही सदियों से साखी ।
- प्यार , मान-सम्मान , बढ़ाती आई राखी ।
- ६. सावन.......ऋतुओं में खासमखास सावन की फुहारें समेटती कवि की कुण्डलिया देखिए|
- छाई सावन की घटा, रिमझिम पड़े फुहार।
- गांव-गांव झूला पड़े, गूंजे मंगल चार।।
- गूंजे मंगलचार, खुशी तन-मन में छाई।
- गरजें खुश हो मेघ, बही मादक पुरवाई।
- ‘ठकुरेला’ कविराय, खुशी की वर्षा आई।
- हरित खेत, वन, बाग, हर तरफ सुषमा छाई।।
- ७. विविध.......
- करता है श्रम रात दिन, कृषक उगाता अन्न।
- रुखा-सूखा जो मिले, रहता सदा प्रसन्न।।
- रहता सदा प्रसन्न , धूप , वर्षा भी सहकर ।
- सींचे फसल किसान , ठण्ड , पानी में रहकर ।
- 'ठकुरेला ' कविराय , उदर इस जग का भरता ।
- कृषक देव जीवंत , सभी का पालन करता ।
- चाबुक लेकर हाथ में, हुई तुरंग सवार।
- कैसे झेले आदमी, महंगाई की मार।।
- मँहगाई की मार , हर तरफ आग लगाये।
- स्वप्न हुए सब ख़ाक , किधर दुखियारा जाये ।
- 'ठकुरेला ' कविराय , त्रास देती है रुक रुक ।
- मँहगाई उद्दंड , लगाये सब में चाबुक ।
- पाठकगण काव्यगंधा पढ़कर बहुत कुछ सीखेंगे| सिर्फ़ कुण्डलिया को समर्पित अद्भुत, उत्कृष्ट और स्तरीय पुस्तक अवश्य पढ़ें| भेंटस्वरूप पुस्तक मुझे भेजने के लिए आदरणीय ठकुरेला जी का आभार|आशा है भविष्य में और भी उत्कृष्ट पुस्तकें प्रकाशित होंगी...इसके लिए अनंत शुभकामनाएँ|
- ऋता शेखर 'मधु'
हाइगा’ जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-हाइकु’ । हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला) हाइगा की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था | लेकिन आज डिजिटल फोटोग्राफी जैसी आधुनिक विधा से हाइगा लिखा जाता है- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’-डॉ हरदीप कौर सन्धु, हिन्दी हाइकु से साभार
यदि आप अपने हाइकुओं को हाइगा के रूप में देखना चाहते हैं तो हाइकु ससम्मान आमंत्रित हैं|
रचनाएँ hrita.sm@gmail.comपर भेजें - ऋता शेखर ‘मधु’
Sunday, 27 April 2014
कुण्डलिया का उपवन "काव्यगंधा" - समीक्षा- ऋता शेखर 'मधु'
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6 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक बेहतरीन पुस्तक के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा ...
आदरणीय ठकुरेला जी उच्च श्रेणी के कुंडलियाकार हैं। पुस्तक भी निश्चित ही सुंदर छंदों से परिपूर्ण होगी। एक उत्कृष्ट संग्रह के बारे में पढ़कर प्रसन्नता हुई।
अच्छी छंद-पुस्तक पर सार्थक समीक्षा केलिए बधाई..
श्री ठकुरेला जी की कुंडलिया छंद पढ़ी जो एक से बढ़कर एक सुन्दर, सार्थक और प्रभापूर्ण है | इनकी कुछ कुंडलिया बाबूजी का भारत मित्र के कुंडलिया छंद विशेषांक में भी पढने को मिली | इन सभी श्रेष्ठ छंदों को लिए हार्दिक बधाई | इस पर हुई साथक समीक्षा के लिए भी बधाई एवं शुभ कामनाए
श्री ठकुरेला जी की श्रेष्ठ कुंडलिया छंद और समीक्षा पढने को मिली | पूर्व में उनकी कुंडलिया बाबूजी का भारत मित्र में भी पढ़ी है | छंद में महारत हासिल श्री ठकुरेला जी को बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभ कामनाए |
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