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Sunday, 10 November 2013

सांसों की सरगम---यथा नाम तथा गुण (पुस्तक समीक्षा )


सांसों की सरगम---यथा नाम तथा गुण

'सांसों की सरगम', अपने नाम के अनुरूप खूबसूरत हाइकु पुस्तक मेरे हाथों में है |यह वरिष्ठ लेखिका आदरणीया  डा रमा द्विवेदी जी का एकल हाइकु संग्रह है जिसे रमा जी ने उपहारस्वरूप भेजा है | आवरण पृष्ठ की साजसज्जा बेहद खूबसूरत है| हिन्द युग्म की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक का  मूल्य मात्र १५०/- रु है| इसमें रमा जी ने ५६९हाइकु पुष्प पिरोए हैं जिनमें विविध रंगों के१६ खुशबूदार पुष्प हैं | १६ विषयों पर आधारित सभी हाइकु हाइकुकार के गहन चिंतन को दर्शाते हैं| वरिष्ठ हाइकुकार आ०रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी एवं आ०डा सतीशराज पुष्करणा जी ने पुस्तक के लिए अनमोल शब्द लिखे हैं| 

प्रकृति पर लिखे गए रमा जी के हाइकु अद्भुत हैं|
ओस के रूप में गिरते चाँद के आँसू उसका अकेलापन दर्शा रहे हैं जिसे ममतामयी उषा अपने आँचल से पोंछ रही है, बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न हो रहा है|
चाँद के आँसू / ओस बन बिखरे / उषा ने पोंछे

हाइकु एक बानगी यहाँ देखिए| समाज में जो कल्याणकारी और मधुर कार्य कर रहे हैं, आवश्यक नहीं कि उनके गुण भी उतने ही अच्छे हों|
मधुमक्खी है/ काम मधु बनाना/ गुण काटना
आग का गुण/ सिर्फ़ जलना नहीं/ जलाना भी

विपरीत परिस्थितियों को भी हँसते हँसते सह लेना चाहिए, उसका अद्भुत उदाहरण है यह हाइकु-
सहते वृक्ष/ वर्षा-शिशिर-ग्रीष्म/ खिलखिलाते

युवापीढ़ी पर अनावश्यक रोकटोक ठीक नहीं, इस हाइकु में देखिए|
वट न बनो/ पनपने दो पौधे/ निज छाँव में

नव जीवन सदा खुशियाँ ही देता है, यहाँ देखिए|
खिलता मन/ नई कोंपलें देख / विस्मृत गम

यह हाइकु मृगमरीचिका का आभास देता हुआ-
अंबर धरा/ क्षितिज में मिलन/ सुंदर भ्रम

व्यथित मन की दास्ताँ हैं ये हाइकु-
जुबाँ खामोश/ चेहरे पे उल्लास/ दर्द पर्दे में
हर रिश्ते में/ होता है अनुबंध/ दर्द-पैबंद

जिन्दगी के लिए रमा जी का नजरिया इस प्रकार है-
मंज़िल नहीं/ सफ़र है ज़िन्दगी/ रुकी तो खत्म

दोहरा व्यक्तित्व मन को क्षोभ से भर देता है,
सभ्य इंसान/ असभ्य हरकतें/ युग का सच

मनुष्य कभी कभी अपने ही गुणों से अनभिज्ञ रहता है, उसे पाने के लिए प्रेरित करता यह सुंदर हाइकु- 
खंगालो जरा / मन का समंदर / मोती गहरे

कोई भी रचनकर्म काफी वक्त लेती है किन्तु उसे मिटाना हो तो पल भर भी नहीं लगता, इस बात को रमा जी ने हाइकु में इस तरह से सहेजा है--कठिन होता / रचनात्मक कार्य / ध्वंस आसान

माँ को शब्दों में बाँधना बहुत कठिन है पर इस हाइकु के बारे में क्या ख्याल है ?
माँ सरगम / माँ प्रेम प्रतिभास / माँ अहसास

आज के जमाने में जब सभी अंतरजाल से जुड़े हैं तो उस पर हाइकु भी अवश्य लिखा जाना चाहिए| रमा जी ने बहुत सुंदर हाइकु लिखे इस विषय पर...
हैं अनजान / अड़ोस पड़ोस से / सर्फिंग प्यार
फेसबुक में / ग़ज़ब आकर्षण / अजब नशा

ये थे रमा द्विवेदी जी के कुछ हाइकु जो 'सांसों की सरगम' की शोभा बढ़ा रहे हैं| अब बाकी हाइकु तो पुस्तक में ही पढ़े जा सकते हैं| विविध विषयों पर लिखे गए सभी हाइकु पढ़कर आपको भी आनन्द आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है| आगे भी रमा जी से इतनी ही सारगर्भित पुस्क की अपेक्षा है|
.........शुभकामनाओं सहित
ऋता शेखर 'मधु'
10/11/2013


6 comments:

virendra sharma said...



चाँद के आँसू / ओस बन बिखरे / उषा ने पोंछे

हाइकु-
सहते वृक्ष/ वर्षा-शिशिर-ग्रीष्म/ खिलखिलाते

वट न बनो/ पनपने दो पौधे/ निज छाँव में

कृतित्व और समीक्षा दोनों अप्रतिम रहीं। हाइकु सिर्फ शब्द चमत्कार मात्राओं का जोड़ नहीं है पहली बार लगा पढ़कर ये हाइकु।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर पुस्तक और वैसे ही हायकू...
बधाई रमा जी को..
बहुत प्यारी समीक्षा लिखी है ऋता दी!!

सस्नेह
अनु

Rama said...

प्रिय ऋता,
`साँसों कि सरगम ' हाइकु संग्रह का गहन अध्ययन करके बहुत ही सारगर्भित समीक्षा करके आपने अपना वचन ही नही निभाया बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि आज भी ऐसे व्यक्ति हैं जो सिर्फ कहते ही नही करते भी हैं वरना तो अधिकतर लोग कहते बहुत हैं लेकिन करते बहुत कम हैं । कथनी और करनी का यह अंतर मनुष्य को बहुत बौना साबित कर रहा है । जो भी हो हमें अपना कर्म सही तरीके से करना चाहिए । आपने अपना समय और श्रम मेरे हाइकु संग्रह को दिया और विवेचनात्मक समीक्षा यहाँ पर प्रेषित की इस स्नेह को पाकर अत्यंत हर्षित हूँ ,धन्यवाद जैसे औपचारिक शब्दो से आपके स्नेह को नहीं बाँधना चाहती । आपके भविष्य की उज्जवल कामना के साथ स्नेहांशीष स्वीकारें ....
-डॉ रमा द्विवेदी

Rama said...

वीरेंद्र कुमार शर्मा जी ,आपको हाइकु पसंद आये....स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए .बहुत -बहुत दिल से शुक्रिया। …डॉ रमा द्विवेदी

Rama said...

वीरेंद्र कुमार शर्मा जी ,आपको हाइकु पसंद आये....स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए .बहुत -बहुत दिल से शुक्रिया। …डॉ रमा द्विवेदी

Rama said...

अनु जी, आपकी स्नेहिल टिप्पणी मन को हर्षित कर गई।.....बहुत-बहुत दिल से आभारी हूँ …डॉ रमा द्विवेदी