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रचनाएँ hrita.sm@gmail.comपर भेजें - ऋता शेखर मधु

Thursday 3 November 2011

ये बुलबुले

बचपन में सभी ने साबुन के घोल से बुलबुले उड़ाए हैं| इन बुलबुलों को यदि ज़िन्दगी से जोड़कर देखा जाए तो बहुत कुछ कह जाते हैं...                                      ये बुलबुले...










सारे चित्र गूगल से साभार

10 comments:

Gyan Darpan said...

शानदार प्रस्तुति


Gyan Darpan
Matrimonial Service

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

लाजवाब

प्रियंका गुप्ता said...

बाल मन, सपने, प्रकृति, परिवार...कितनी चीज़ों से इतनी खूबसूरती से बुलबुलों को जोड़ दिया...।
बहुत प्यारा लगा...साथ ही बचपन की ढेर सारी यादें भी ले आया बुलबुलों से जुड़ी...बधाई...।

प्रियंका

रचना दीक्षित said...

सुंदर हायगा रचनाएँ बहुत सुंदर लगी. बढ़िया भाव लिये हुए.

बधाई.

सहज साहित्य said...

सभी हाइगा अच्छे हैं।

Dr.Bhawna Kunwar said...

achchha laga bulbulo par padhkar..

Rama said...

`बुलबुले' का आपने बहुत विस्तार से सुन्दर चित्रण किया है ..बहुत-बहुत बधाई ...
डा रमा द्विवेदी

Urmi said...

बुलबुले को लेकर आपने इतना सुन्दर हाइगा लिखा है की शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता! ख़ूबसूरत चित्र के साथ शानदार प्रस्तुती!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

डॉ. जेन्नी शबनम said...

bulbule ko lekar bahut bhaavpurn haaiku aur haaiga. shubhkaamnaayen.

ऋता शेखर 'मधु' said...

Amita Kaundal to me

रीता जी आपके बुलबुले पर हईगा बहुत सुंदर हैं बच्चों के साथ हम फिर से एकबार बचपन जीते हैं और बुलबुले उसी बचपन की याद हैं.
बधाई.
सादर,
अमिता कौंडल